बांके बिहारी मंदिर भेन्डौली व पीली पिछोरी वाले बाबा के आश्रम को जोड़ने वाली कड़ी एवं गांव भेन्डौली की सबसे बड़ी शोभा चौंढे रावत बनी है । यह द्वापर युग का वन है, जहां स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गाय चराई थी एवं अनेकों प्रकार की लीलाएं की थी। तभी से यह वन संतो की तपोस्थली के रूप में प्रसिद्ध हुआ है । अनेकों संतो ने इस पवित्र एवं सिद्ध वन में तप किया है । आज भी हजारों वर्ष पुराने वृक्ष यहां मौजूद हैं जोकि स्वयं सिद्ध संत हैं और वृक्षों के रूप में आज भी तपस्या रत हैं । इस बारे में परम सिद्ध संत बाबा पीली पिछोरी वाले महाराज के समय की एक घटना आज भी उनके शिष्यों में प्रसिद्ध है। एक बार महाराज श्री ने किसी आवश्यक कार्य के लिए कुछ वृक्षों को कटवाने के बारे में सोचा एवं किसी लकड़हारे को इस कार्य के लिए कह दिया परंतु उसी रात महाराज श्री के पास अर्ध रात्रि के समय में अनेक दिव्य संत पधारे और कहा की महाराज हम यहां अनेकों वर्षों से वृक्षों एवं लता पताओं के रूप में तप कर रहे हैं । हमने कभी किसी का अहित नहीं किया है, हम केवल साधना में लीन रहते हैं । अतः कृपया हमें अपने भजन में लीन रहने दें हमें ना कटवाए इस घटना के अगले ही दिन महाराज जी ने पेड़ों को कटवाने का विचार त्याग दिया एवं समस्त शिष्यों को उपदेश किया कि जब तक तुम्हारा जीवन है इस पवित्र वन में से किसी भी वृक्ष को कटने मत देना । तभी से इस वन में से कोई किसी भी प्रकार की लकड़ी प्रयोग में नहीं लेता है। प्रमाणित तथ्य है की पहले अगर गलती से भी किसी के घर में वन की लकड़ी चली जाती थी तो उस घर में विचित्र प्रकार की लाल चीटियां प्रकट हो जाती थी ,जब तक गलती के लिए क्षमा नहीं मांगी जाती थी तब तक वह चीटियां गायब नहीं होती थी। यह आज भी बुजुर्गों के मुख से सुनने को मिलता है ऐसी पवित्र तपोभूमि एवं तपोवन का दर्शन एवं परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है।